IRAN: इस्लामी क्रांति के बाद उदारवादी और रूढ़िवादी सोच के बीच शासकों का हाल
ईरान के पांच दशक के इतिहास में, मौजूदा सर्वोच्च नेता अली खामेनेई को छोड़कर सभी राष्ट्राध्यक्षों को कुछ न कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ा है। या तो वे सत्ता में रहते हुए मर गए या फिर उन्हें राजनीतिक रूप से निशाना बनाया गया। कईयों को राष्ट्रपति बनने के बाद फिर से चुनाव लड़ने से रोक दिया गया।
इनमें मोहम्मद अली राज़ई के बाद, इब्राहिम रईसी दूसरे ऐसे राष्ट्रपति हैं जिनका कार्यकाल किसी घातक दुर्घटना के कारण समाप्त हुआ है.
मौजूदा सुप्रीम धार्मिक नेता अली ख़ामेनेई को छोड़ कर, 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से अब तक ईरान के शासकों के राजनीतिक करियर का अंत सुखद नहीं रहा और एक प्रकार से कहें तो जनता के प्रतिनिधि और मौजूदा सुप्रीम लीडर अली ख़ामेनेई के बीच कहीं न कहीं संबंध सहज नहीं रहे ।
आइये एक नजर इतिहास में दर्ज ईरानी जन-प्रतिनिधिओं के राजनैतिक जीवन पर डालते हैं।
मेहदी बज़ारगान
1979 में इस्लामी क्रांति के बाद सरकार के पहले (अस्थायी) प्रधानमंत्री मेहदी बज़ारगान को पहले दिन से ही शिकायतें थीं. वे अपने पद के लिए अधिक शक्तियां चाहते थे.
जब उन्हें ईरान की राजधानी तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर कब्ज़ा होने सहित कई बाधाओं का सामना करना पड़ा और वे कुछ भी करने में असमर्थ हो गए, तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया.
मेहदी बज़ारगन ने अपने इस्तीफे के दो दिन बाद देश की जनता को संबोधित एक संदेश में कहा था कि जब एक प्रधानमंत्री को भी किसी से मिलने के लिए धर्मगुरु की अनुमति की जरूरत पड़ती है, तो एक असहनीय दर्द महसूस होता है.
अबुल हसन बनी सद्र
इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के पहले धर्मगुरु अयातुल्लाह रुहोल्लाह ख़ुमैनी ने देश के राष्ट्रपति के रूप में एक साधारण व्यक्ति अबुल हसन बनी सद्र को प्रत्याशी बनाया और अबुल हसन ने 75% से अधिक वोटों से चुनाव जीता.
युद्ध मामलों के प्रबंधन के उनके तरीके और इस्लामिक रिपब्लिक पार्टी के थोपे गए प्रधानमंत्री मोहम्मद अली राजाई से उनके विरोध ने मतभेदों को बढ़ा दिया.
उन्होंने इराक़ के साथ युद्ध में सेना की भूमिका पर जोर दिया, लेकिन इस्लामिक रिपब्लिक पार्टी आईआरजीसी (रिपब्लिकन गार्ड्स) की बड़ी भूमिका चाहती थी.
उस वक्त के सुप्रीम लीडर खुमैनी ने उन पर इस हद तक भरोसा किया कि, संविधान को दरकिनार करते हुए, बनी सद्र को सामान्य बलों की भी कमान सौंप दी.
अबुल हसन बनी सद्र और ईरानी मजलिस में बहुमत वाली इस्लामिक रिपब्लिक पार्टी के बीच संघर्ष के कारण आख़िरकार उनकी बर्खास्तगी हुई.
ईरानी कैलेंडर के मुताबिक जून 1981 में ईरान के पहले राष्ट्रपति को उनकी “राजनीतिक अक्षमता” की बिनाह पर संसद के निर्णायक वोट द्वारा पद से हटा दिया गया.
महाभियोग की सुनवाई के दौरान अली ख़ामेनेई समेत उनके विरोधियों ने, उनके खिलाफ़ जोरदार भाषण दिए.
उनकी बर्खास्तगी के बाद, बनी सद्र को “देशद्रोह और शासन के खिलाफ साजिश” के आरोप में गिरफ्तारी वारंट का सामना करना पड़ा. लेकिन वह फ्रांस भाग गए और अपने जीवन का बाकी वक्त वहीं बिताया.
मोहम्मद अली रजाई
बनी सद्र की बर्खास्तगी के बाद, मोहम्मद अली राज़ई राष्ट्रपति बने.
उनका कुछ हफ्तों का राष्ट्रपति का कार्यकाल कोई ख़ास नहीं था. उन्होंने दो अगस्त 1981 को पदभार संभाला था.
उसी साल प्रधानमंत्री कार्यालय में 30 अगस्त 1981 को हुए विस्फोट में देश के प्रधानमंत्री मोहम्मद जवाद बहनार के साथ उनकी भी मृत्यु हो गई थी.
इस बमबारी का आरोप पीपल्स मोजाहिदीन संगठन (साज़मान ए मुजाहिदीन ए खल्क) पर लगा, हालाँकि इस संगठन ने आधिकारिक तौर पर इस बमबारी की ज़िम्मेदारी नहीं ली.
राज़ई के बाद अली खामेनेई राष्ट्रपति बने.
राष्ट्रपति कार्यकाल के अंत में और अयातुल्ला खुमैनी की मृत्यु के बाद उन्हें नेता के रूप में चुना गया था.
ख़ामेनेई, ईरानी क्रांति के बाद सरकार के एकमात्र प्रमुख हैं जो अपने कार्यकाल के अंत में एक उच्च पद पर पहुँचे और राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में जीत हासिल की.
मीर हुसैन मोसवी
ख़ामेनेई, अली अकबर वेलायती को अपना प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन संसद में वेलायती विश्वास मत हासिल नहीं कर पाए. आख़िरकार, उन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध मीर हुसैन मोसवी का नाम संसद में प्रस्तुत करना पड़ा.
ख़ामेनेई और उनके तनावपूर्ण रिश्तों के कारण आखिरकार मीर हुसैन मोसवी को इस्तीफा देना पड़ा था.
उसके बाद ख़ामेनेई ने संविधान में संशोधन कर के प्रधानमंत्री का पद ही खत्म कर दिया गया.
इसके बाद मीर हुसैन मोसवी ने राजनीति से सन्यास ले लिया और सार्वजनिक जीवन से दूर हो गए।
हालांकि बीस साल की सियासी गुमनामी के बाद मोसवी ने 2009 में राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल होने की कोशिश जरूर की, लेकिन वह इस अभियान में सफल नहीं हो पाए.
इस चुनाव के बाद प्रदर्शनकारियों ने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद को हटाने के लिए मुहिम छेड़ी और देश भर में विरोध प्रदर्शन किए।
इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान टकराव के कारण मीर हुसैन मोसवी को नज़रबंद कर दिया गया था, और बाद में दो फ़रवरी 2013 को मोसवी को फिर गिरफ़्तार कर लिया गया. वे अब भी जेल में बंद हैं.
अकबर हाशमी रफ़संजानी
अकबर हाशमी रफसंजानी को खुमैनी के बाद ईरान की सत्ता का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता था. साल 1989 में रफ़संजानी ईरान के राष्ट्रपति बने. उनके कार्यकाल के शुरुआती चार साल तनावपूर्ण थे.
हिज़्बुल्लाह जैसे आतंकी संगठनों ने उनकी सांस्कृतिक नीतियों का विरोध करना शुरू कर दिया था.
साल 1993 में शुरू हुए रफ़संजानी के दूसरे कार्यकाल में अयातुल्ला खामेनेई ने “अभिजात वर्ग और मुक्त बाजार नीति” का खुले तौर पर विरोध किया.
वे 2005 के चुनावों के दूसरे दौर में महमूद अहमदीनेजाद से हार गए थे, लेकिन उनके राजनीतिक निष्कासन की प्रक्रिया में निर्णायक मोड़ 17 जुलाई 2009 को आया.
उस साल अहमदीनेजाद ने चुनाव तो जीता था लेकिन लोगों ने धांधली के आरोप लगाए थे. तेहरान समेत देश के कई शहरों में इसका विरोध भी हुआ था.
17 जुलाई को हाशमी ने तेहरान में शुक्रवार की प्रार्थना के दौरान अपना अंतिम राजनीतिक उपदेश दिया. इसमें उन्होंने प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया और महमूद अहमदीनेजाद के चुनाव परिणाम को ‘संदिग्ध’ बताया.
इसके बाद 2013 में उन्होंने एक बार फिर राष्ट्रपति बनने के लिए नामांकन भरा. ये हैरान करने वाली ख़बर थी.
पूर्व सुधारवादी राष्ट्रपति मोहम्मद ख़ातमी ने उनका समर्थन किया, लेकिन 21 मई 2013 को ईरान की गार्डियन काउंसिल ने उनका नामांकन रद्द कर दिया. लेकिन दो साल बाद वे ईरानी संसद के ऊपरी सदन यानी मजलिस ए खोब्रगान के चुनाव में तेहरान से भारी बहुमत से जीते.
8 जनवरी 2017 को स्विमिंग पूल में नहाते हुए उनकी मौत हो गई. इस मौत को संदिग्ध माना जाता रहा है.
उनके परिवार का आरोप था कि उनके शरीर में आम व्यक्ति से 10 गुना अधिक रेडियोएक्टिविटी थी.
हालांकि 2018 में ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने रफ़सनजानी की मौत को दोबारा इन्वेस्टिगेट करने का आदेश दिया.
मोहम्मद खातमी
मोहम्मद ख़ातमी 23 मई 1997 को दो करोड़ से अधिक वोटों के साथ ईरान के राष्ट्रपति चुने गए थे, लेकिन शुरुआती महीनों से ही सरकार में तनाव के संकेत साफ दिखाई देने लगे थे.
राष्ट्रपति मोहम्मद खातमी ने कहा कि उनकी सरकार को हर 9 दिन में एक बार संकट का सामना करना पड़ता है.
साल 2001 में ईरान के सर्वोच्च नेता ने मोहम्मद ख़ातमी समर्थित सुधारवादी प्रेस को ‘दुश्मन का डेटाबेस’ कहा और दर्जनों प्रकाशन बंद कर दिये गए.
2004 के संसदीय चुनावों के नतीजों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन की घटनाओं के बाद, ईरान के अंदर मीडिया में ख़ातमी की तस्वीर छापने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और फ़ार्स समाचार एजेंसी के मुताबिक उनके देश छोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.
भले ही उन्हें ईरान में राजनीतिक गतिविधियों से हटा दिया गया था लेकिन फिर भी उन्होंने कुछ सुधारवादियों के विरोध के बावजूद लोगों को पिछले चुनावों में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया.
महमूद अहमदीनेजाद
अहमदीनेजाद 2005 में राष्ट्रपति बने थे. उनके चुनाव के बाद आयतुल्लाह ख़ामेनेई और उनके करीबी मौलवियों के बयानों से ऐसा लगा था कि ईरान को राष्ट्रपति पद के लिए अपना सबसे उपयुक्त व्यक्ति मिल गया है.
लेकिन यह राजनीतिक दोस्ती ज्यादा दिनों तक नहीं चली. अहमदीनेजाद ने 2009 में दूसरी बार राष्ट्रपति पद का चुनाव जीता.
उन्होंने शपथ समारोह में ईरानी नेता (धर्मगुरु) के हाथ के बजाय कंधे को चूमा. ईरान में ऐसा कोई रिवाज़ नहीं है.
कुछ दिनों बाद, उन्होंने असफनदियार रहीम मशाई को प्रथम डिप्टी के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन ख़ामेनेई ने एक निजी पत्र में कहा कि वह इस तरह के विकल्प को सही नहीं मानते हैं.
लेकिन अहमदीनेजाद ने तब तक अपना निर्णय नहीं बदला जब तक ईरान के सुप्रीम लीडर ख़ामेनेई के कार्यालय ने इस ख़त को सार्वजनिक नहीं किया.
इसके बाद ख़ामेनेई ने सूचना मंत्री हैदर मोस्लेही की बर्खास्तगी का विरोध किया, लेकिन राष्ट्रपति इस विरोध से प्रभावित नहीं हुए.
गुस्से के संकेत के तौर पर वे 11 दिनों तक राष्ट्रपति कार्यालय में नहीं गए.
महमूद अहमदीनेजाद तीसरे कार्यकाल के लिए एक बार फिर 2017 में राष्ट्रपति चुनाव में कूद पड़े, लेकिन गार्डियन काउंसिल ने उनकी उम्मीदवारी को खारिज कर दिया.
हसन रूहानी
हसन रूहानी 2013 का राष्ट्रपति चुनाव जीतकर सत्ता में आए थे. उन्हें सबसे सुरक्षित राजनीतिक शख्सियतों में से एक माना जाता है.
अपने कार्यकाल की शुरुआत से ही, रूहानी ने ख़ामेनेई का विश्वास हासिल करने की कोशिश की.
हालाँकि, अमेरिका के साथ बातचीत करने की कोशिश और ‘संयुक्त व्यापक कार्य योजना’ (जेसीपीओए) नामक एक अन्य समझौते की तैयारी करने के लिए खामेनेई की ओर से कई बार आलोचना हुई.
हसन रूहानी और उनके रिश्तेदारों के खिलाफ कई आर्थिक अपराध के आरोप लगाए गए. जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे उनमें उनके भाई हसन फरीदून भी शामिल थे.
ईरान अन्य इस्लामिक देशों की तुलना में तुर्कीय की तरह ही विकसित और उदारवादी सोच वाला देश है, लेकिन धार्मिक और राजनैतिक टकराव हमेशा ही बना रहता है।