30.7 C
New Delhi
Friday, July 4, 2025

Top 5 This Week

Related Posts

Karni Mata Mandir: देशनोक के करणी माता मंदिर का अद्भुत रहस्य

Karni Mata Mandir: राजस्थान के बीकानेर जिले में मौजूद करनी माता मंदिर (देशनोक का करणी माता मंदिर) में देश विदेश से भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं। बीकानेर जिले में देशनोक गांव में स्थित करनी माता मंदिर अपनी अनोखी और अद्भुत तथ्यों के लिए प्रसिद्ध है।

देशनोक का करणी माता मंदिर का अनोखा और आश्चर्यजनक तथ्य है हजारों की संख्या में चूहों के मौजूदगी, और वह भी मंदिर में ही रहते हैं। इस मंदिर में आने वाले भक्त इन हजारों चूहों को देखकर हैरान रह जाते है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि मंदिर में मौजूद इन चूहों से किसी को कोई दिक्कत या बीमारी नहीं होती है क्या? , वहीं मंदिर में चूहों का खाया प्रसाद भी खिलाया जाता है।

जानते है पहले इस मंदिर से संबंधित लोक प्रचलित कथा,

करणी माता मंदिर दंतकथा

माना जाता है कि करणी माता शक्ति की प्रतिमूर्ति थीं और आजीवन ब्रह्मचारी रहीं, विवाह के पश्चात उन्होंने अपने पति देपाजी के वंश को आगे बढ़ाने के लिए अपनी छोटी बहन का विवाह उनसे करवा दिया था जिनसे देपाजी के चार बेटे थे, जिनमें सबसे छोटा लक्ष्मण था और वह करणीजी को अति प्रिय भी था।

एक दिन, बालक लक्ष्मण नहाते समय कोलायत के नज़दीक कपिल सरोवर में डूब गए । उनकी छोटी बहन ने करणी माता से लक्ष्मण को वापस जीवित करने की प्रार्थना की। इस प्रकार, करणी माता ने लड़के के शरीर को अपने हाथों से उठाया और उसे उस स्थान पर ले आईं जहाँ अब मूर्ति (आंतरिक गर्भगृह) है, दरवाज़े बंद कर दिए और कहा कि उन्हें न खोलें। वह मृत्यु के देवता यमराज के पास गई और लक्ष्मण को वापस जीवन देने की माँग की। मृत्यु के देवता ने पूछा, “यदि ऐसा है, तो पुनर्जन्म का चक्र कैसे चलेगा? यह किस नियम से चलेगा?” इस पर करणी माता ने इस प्रकार घोषणा की कि उनका परिवार अब यमराज के पास नहीं आएगा। “मैं जहाँ भी रहूँगी, वे वहीं रहेंगे। जब वे मरेंगे, तो मेरे साथ रहेंगे।”

फिर, करणी माता ने चूहा का सजीव रूप चुना, ताकि जब उसके वंश के मानव चरण मरें, तो वे चूहा के रूप में पुनर्जन्म लें और मंदिर के भीतर उसके पास ही रहें , और जब चूहा मरें, तो वे फिर से मानव चरण के रूप में पुनर्जन्म लें।

करणी माता की मंदिर

धार्मिक मान्यता के अनुसार, करनी माता को देवी दुर्गा का अवतार मानते हैं। वह एक लोकप्रिय महिला संत थीं, जिन्होंने 14वीं शताब्दी में इस स्थान पर अपना जीवन बिताया था। माना जाता है कि उनके पास अनेक चमत्कारी शक्तियों थी जो उन्होंने समाज कल्याण के लिए उपयोग की और अपना जीवन तपस्या एवं सेवा करने में बिताया। स्थानीय लोगों के अनुसार करनी मां के वंशज मृत्यु के बाद चूहों का रूप ले लेते हैं और मां के साथ मंदिर में निवास करते हैं। करनी माता के निधन के बाद श्रद्धालुओं ने उनकी मूर्ति स्थापित की और वहां पर मंदिर भी बनवाया जहां देशभर के लोग मंदिर में करनी माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

करणी माता मंदिर में रहते हैं हजारों चूहें

राजस्थान के बीकानेर जिले में मौजूद देशनोक का करणी माता मंदिर दुनिया में अपने आप पहला और अंतिम अनोखा मंदिर है जहां हजारों की संख्या में चूहे रहते हैं और लोगों को इनके द्वारा खाया हुआ प्रसाद भी खिलाया जाता है। साथ ही  इनकी पूजा भी की जाती है। माना जाता है कि यह चूहे करनी माता के वंशज का पुनर्जन्म है। जिनको मंदिर में ‘काबा’ ( चूहा) कहते हैं। इनको यहां पर कोई भी नुकसान नहीं पहुंचा सकता है। मंदिर में सफेद चूहा दिख जाने पर उसको शुभ माना जाता है। माना जाता है कि सफेद चूहा दिखना माता रानी का खास आशीर्वाद होता है।

करणी माता मंदिर में सफ़ेद काबा (चूहा) कौन है?

मंदिर में हज़ारों काबा चूहों में से कुछ सफ़ेद काबा हैं , जिन्हें विशेष पवित्र आऊर अति शुभ माना गया है। माना जाता है कि यह सफ़ेद काबा (चूहा) करणी माता और उनके चार भतीजों के अवतार हैं। उन्हें देखना एक विशेष आशीर्वाद माना जाता है और आगंतुक उन्हें देखने के लिए बहुत प्रयास करते हैं, प्रसाद चढ़ाते हैं , जो एक मीठा पवित्र भोजन है।

करणी माता मंदिर में चूहों का झूठा प्रसाद

मंदिर के चूहे यहां पर किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। यहां तक कि यदि मंदिर में कोई बीमार आता है, तो उस व्यक्ति को चूहों का छुआ पानी पिलाया जाता है। माना जाता है, मंदिर में कोई सामान्य चूहे नहीं हैं, बल्कि देवी मां का आशीर्वाद हैं। मंदिर में चूहों की संख्या हजारों में है, लेकिन इसका कोई आंकड़ा नहीं है। मंदिर में देवी करणी माता को चढ़ाया जाने वाला भोजन चूहों को खिलाते हैं, फिर उसी झूठे प्रसाद भक्तों को बांटा जाता है। वहीं श्रद्धालु भी इस प्रसाद का सेवन बड़ी भक्ति के साथ करते हैं।

करणी माता मंदिर का इतिहास क्या है?

करनी माता मंदिर के इतिहास के बारे में कोई सटीक प्रमाण नहीं है। लेकिन मंदिर को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। जिसमें से एक कहानी यह है कि इस मंदिर को राजा जय सिंह ने बनवाया था। वहीं मंदिर का वर्तमान समय जो रूप है, इसका श्रेय महाराजा गंगा सिंह को जाता है। उन्होंने इस मंदिर का 15 से 20वीं सदी में इस मंदिर का निर्माण राजपूत शैली में करवाया था। करणी माता मंदिर में संगमरमर की नक्काशी देख सकते हैं। इस मंदिर में चांदी के दरवाजे लगाए गए हैं। बताया जाता है 1595 में चैत्र शुक्ल की नवमी तिथि और दिन गुरुवार को मां करनी यहां ज्योर्तिलीन हुई थीं। जिसके बाद से यहां पर मां करनी की पूजा की जा रही है।

करणी माता मेला

देशनोक में करणी माता का मेला वर्ष में दो बार लगता है: पहला और बड़ा मेला मार्च-अप्रैल में चैत्र शुक्ल एकम से चैत्र शुक्ल दशमी तक नवरात्रों के दौरान आयोजित होता है। दूसरा मेला सितम्बर-अक्टूबर में, नवरात्रि के दौरान, आश्विन शुक्ल से आश्विन शुक्ल दशमी तक आयोजित होता है।नवरात्रि के दौरान हजारों लोग पैदल मंदिर की तीर्थयात्रा करते हैं।

करणी माता ओरण परिक्रमा

करणी माता द्वारा स्थापित देशनोक का ओरण 42 किलोमीटर का क्षेत्र है जिसे पवित्र माना जाता है, यहाँ किसी भी प्राणी को नुकसान नहीं पहुँचाया जाता है तथा किसी भी पेड़ की लकड़ी काटना वर्जित माना गया है, अर्थात वन और वन्य प्राणी की सुरक्षा करके प्रकती का संरक्षण भी किया जय है। नवरात्रों में ओरण परिक्रमा में आमतौर पर हज़ारों लोग आते हैं।

कैसे पहुंचे करणी माता मंदिर?

बीकानेर-जोधपुर रेल मार्ग पर मौजूद देशनोक रेलवे स्टेशन के पास करनी माता मंदिर के पास पड़ता है।

आप साल में दो बार चैत्र और शारदीय नवरात्रि के दौरान करणी माता मंदिर में दर्शन के लिए आ सकते हैं। इस दौरान मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ होती है। वहीं भक्तों के रुकने के लिए मंदिर के पास कई धर्मशालाएं हैं। मंदिर तक जाने के लिए टैक्सी, बस और जीप ले सकते हैं।

करणी माता मंदिर दर्शन समय?

मंदिर सुबह 04:00 बजे भक्त गण के लिए खोला जाता है। पुजारी जी मंगला आरती करते हैं और पूजा में भोग (विशेष भोजन) चढ़ाते हैं। भक्त चूहों को प्रसाद चढ़ाते हैं, जो बड़ी संख्या में मंदिर में घूमते हैं और उन्हें शुभ माना जाता है। प्रसाद में अन्न, फल, पनीर और मिठाई शामिल हैं। चूहों के आनंद के लिए मंदिर के चारों ओर दूध के कटोरे भी रखे गए हैं। यहाँ दो तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं, एक ‘द्वार भेंट’ पुजारी और कार्यकर्ताओं को दी जाती है, जबकि दूसरी ‘कलश भेंट’ का उपयोग मंदिर के रख-रखाव और विकास के लिए किया जाता है।

 

कमलेश पाण्डेय
अनौपचारिक एवं औपचारिक लेखन के क्षेत्र में सक्रिय, तथा समसामयिक पहलुओं, पर्यावरण, भारतीयता, धार्मिकता, यात्रा और सामाजिक जीवन तथा समस्त जीव-जंतुओं पर अपने विचार व्यक्त करना।

Popular Articles