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Friday, July 4, 2025

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Maha Shivaratri: महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व एवं प्रमुख शिवालय

भगवान शिव को समर्पित शिव और माता पार्वती के विवाह का उत्सव, महाशिवरात्रि (Maha Shivaratri) इस वर्ष  26 फरवरी 2025, दिन बुधवार को मनाया जाएगा।

पौराणिक ग्रंथों और शस्त्रों के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। पारिवारिक और सन्यासी सभी लोग इस दिन भोले बाबा शिव की पूजा करते हैं, व्रत भी करते हैं और रात्रि-जागरण करते हुए शिव की पूजा आराधना और ध्यान करते हैं।

महाशिवरात्रि मुहूर्त:

26 फरवरी 2025, बुधवार 11:08 पूर्वाह्न  –  27 फरवरी 2025, गुरुवार 8:54 पूर्वाह्न

यहाँ पर आपको बेंगलुरु के कुछ प्रसिद्ध शिवालय या शिव मंदिरों के बारे में जानकारी दे रहे हैं और यदि आप महाशिवरात्रि (Maha Shivaratri) का त्योहार शिवालय में मनाना चाह रहे हैं तो, इन स्थानों पर अवश्य जायें। यहाँ महाशिवरात्रि के दौरान यहां काफी भीड़ भी रहती है।

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है?

हर चंद्र मास का चौदहवाँ दिन अथवा अमावस्या से पूर्व का एक दिन शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। एक कैलेंडर वर्ष  में आने वाली सभी शिवरात्रियों में से, महाशिवरात्रि (Maha Shivaratri) को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, जो फरवरी-मार्च माह में आती है। इस रात, ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य के भीतर की ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की और जाती है।

यह एक ऐसा दिन है, जब प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद करती है। इस समय का उपयोग करने के लिए, इस परंपरा में, हम एक उत्सव मनाते हैं, जो पूरी रात चलता है। पूरी रात मनाए जाने वाले इस उत्सव में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि ऊर्जाओं के प्राकृतिक प्रवाह को उमड़ने का पूरा अवसर मिले, इसमें आप अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए निरंतर जागरण करते रहते हैं।

महाशिवरात्रि का महत्व

महाशिवरात्रि (Maha Shivaratri) आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधकों के लिए बहुत महत्व रखती है। यह उनके लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं और संसार की महत्वाकांक्षाओं में मग्न हैं। पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मग्न लोग महाशिवरात्रि को, शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं। परंतु, साधकों के लिए, यह वह दिन है, जिस दिन वे कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे। वे एक पर्वत की भाँति स्थिर व निश्चल हो गए थे। यौगिक परंपरा में, शिव को किसी देवता की तरह नहीं पूजा जाता। उन्हें आदि गुरु माना जाता है, पहले गुरु, जिनसे ज्ञान उपजा। ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के पश्चात्, एक दिन वे पूर्ण रूप से स्थिर हो गए। वही दिन महाशिवरात्रि का था। उनके भीतर की सारी गतिविधियाँ शांत हुईं और वे पूरी तरह से स्थिर हुए या उनका चित्त पूरी तरह स्थिर हो गया, इसलिए साधक महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात्रि के रूप में मनाते हैं।

महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व

इसके पीछे की कथाओं को छोड़ दें, तो यौगिक परंपराओं में इस दिन का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसमें आध्यात्मिक साधक के लिए बहुत सी संभावनाएँ मौजूद होती हैं। आधुनिक विज्ञान अनेक चरणों से होते हुए, आज उस बिंदु पर आ गया है, जहाँ उन्होंने आपको प्रमाण दे दिया है कि आप जिसे भी जीवन के रूप में जानते हैं, पदार्थ और अस्तित्व के रूप में जानते हैं, जिसे आप ब्रह्माण्ड और तारामंडल के रूप में जानते हैं, वह सब केवल एक ऊर्जा है, जो स्वयं को लाखों-करोड़ों रूपों में प्रकट करती है। यह वैज्ञानिक तथ्य प्रत्येक योगी के लिए एक अनुभव से उपजा सत्य है। ‘योगी’ शब्द से तात्पर्य उस व्यक्ति से है, जिसने अस्तित्व की एकात्मकता को जान लिया है। जब मैं कहता हूँ, ‘योग’, तो मैं किसी विशेष अभ्यास या तंत्र की बात नहीं कर रहा। इस असीम विस्तार को तथा अस्तित्व में एकात्म भाव को जानने की सारी चाह, योग है। महाशिवारात्रि (Maha Shivaratri) की रात, व्यक्ति को इसी का अनुभव पाने का अवसर देती है।

महाशिवरात्रि जागृति की रात क्यों है?

महाशिवरात्रि एक अवसर और संभावना है, जब आप स्वयं को, हर मनुष्य के भीतर बसी असीम रिक्तता के अनुभव से जोड़ सकते हैं, जो कि सारे सृजन का स्त्रोत है। एक ओर शिव संहारक कहलाते हैं और दूसरी ओर वे सबसे अधिक करुणामयी भी हैं। वे बहुत ही उदार दाता हैं। यौगिक गाथाओं में वे, अनेक स्थानों पर महाकरुणामयी के रूप में सामने आते हैं। उनकी करुणा के रूप विलक्षण और अद्भुत रहे हैं। महाशिवरात्रि (Maha Shivaratri) कुछ ग्रहण करने के लिए भी एक विशेष रात्रि है। यह हमारी इच्छा तथा आशीर्वाद है कि आप इस रात में कम से कम एक क्षण के लिए उस असीम विस्तार का अनुभव करें, जिसे हम शिव कहते हैं। यह केवल एक नींद से जागते रहने की रात भर न रह जाए, यह आपके लिए जागरण की रात्रि होनी चाहिए, चेतना व जागरूकता से भरी एक रात!

शिवरात्रि को महीने का सबसे ज्यादा अंधेरा क्यों?

शिवरात्रि माह का सबसे अंधकारपूर्ण दिवस होता है। प्रत्येक माह शिवरात्रि का उत्सव तथा महाशिवरात्रि का उत्सव मनाना ऐसा लगता है मानो हम अंधकार का उत्सव मना रहे हों। कोई तर्कशील मन अंधकार को नकारते हुए, प्रकाश को सहज भाव से चुनना चाहेगा। परंतु शिव का शाब्दिक अर्थ ही यही है, ‘जो नहीं है’। ‘जो है’, वह अस्तित्व और सृजन है। ‘जो नहीं है’, वह शिव है। ‘जो नहीं है’, उसका अर्थ है, अगर आप अपनी आँखें खोल कर आसपास देखें और आपके पास सूक्ष्म दृष्टि है तो आप बहुत सारी रचना देख सकेंगे। अगर आपकी दृष्टि केवल विशाल वस्तुओं पर जाती है, तो आप देखेंगे कि विशालतम शून्य ही, अस्तित्व की सबसे बड़ी उपस्थिति है। कुछ ऐसे बिंदु, जिन्हें हम आकाशगंगा कहते हैं, वे तो दिखाई देते हैं, परंतु उन्हें थामे रहने वाली विशाल शून्यता सभी लोगों को दिखाई नहीं देती। इस विस्तार, इस असीम रिक्तता को ही शिव कहा जाता है।

वर्तमान में, आधुनिक विज्ञान ने भी साबित कर दिया है कि सब कुछ शून्य से ही उपजा है और शून्य में ही विलीन हो जाता है। इसी संदर्भ में शिव यानी विशाल रिक्तता या शून्यता को ही महादेव के रूप में जाना जाता है। इस ग्रह के प्रत्येक धर्म व संस्कृति में, सदा दिव्यता की सर्वव्यापी प्रकृति की बात की जाती रही है। यदि हम इसे देखें, तो ऐसी एकमात्र चीज़ जो सही मायनों में सर्वव्यापी हो सकती है, ऐसी वस्तु जो हर स्थान पर उपस्थित हो सकती है, वह केवल अंधकार, शून्यता या रिक्तता ही है। सामान्यतः, जब लोग अपना कल्याण चाहते हैं, तो हम उस दिव्य को प्रकाश के रूप में दर्शाते हैं। जब लोग अपने कल्याण से ऊपर उठ कर, अपने जीवन से परे जाने पर, विलीन होने पर ध्यान देते हैं और उनकी उपासना और साधना का उद्देश्य विलयन ही हो, तो हम सदा उनके लिए दिव्यता को अंधकार के रूप में परिभाषित करते हैं।

शिवरात्रि का महत्व

प्रकाश आपके मन की एक छोटी सी घटना है। प्रकाश शाश्वत नहीं है, यह सदा से एक सीमित संभावना है क्योंकि यह घट कर समाप्त हो जाती है। हम जानते हैं कि इस ग्रह पर सूर्य प्रकाश का सबसे बड़ा स्त्रोत है। यहाँ तक कि आप हाथ से इसके प्रकाश को रोक कर भी, अंधेरे की परछाईं बना सकते हैं। परंतु अंधकार सर्वव्यापी है, यह हर जगह उपस्थित है। संसार के अपरिपक्व मस्तिष्कों ने सदा अंधकार को एक शैतान के रूप में चित्रित किया है। पर जब आप दिव्य शक्ति को सर्वव्यापी कहते हैं, तो आप स्पष्ट रूप से इसे अंधकार कह रहे होते हैं, क्योंकि सिर्फ अंधकार सर्वव्यापी है। यह हर ओर है। इसे किसी के भी सहारे की आवश्यकता नहीं है। प्रकाश सदा किसी ऐसे स्त्रोत से आता है, जो स्वयं को जला रहा हो। इसका एक आरंभ व अंत होता है। यह सदा सीमित स्त्रोत से आता है।

अंधकार का कोई स्त्रोत नहीं है। यह अपने-आप में एक स्त्रोत है। यह सर्वत्र उपस्थित है। तो जब हम शिव कहते हैं, तब हमारा संकेत अस्तित्व की उस असीम रिक्तता की ओर होता है। इसी रिक्तता की गोद में सारा सृजन घटता है। रिक्तता की इसी गोद को हम शिव कहते हैं। भारतीय संस्कृति में, सारी प्राचीन प्रार्थनाएँ केवल आपको बचाने या आपकी बेहतरी के संदर्भ में नहीं थीं। सारी प्राचीन प्रार्थनाएँ कहती हैं, “हे ईश्वर, मुझे नष्ट कर दो ताकि मैं आपके समान हो जाऊँ।“ तो जब हम शिवरात्रि कहते हैं जो कि माह का सबसे अंधकारपूर्ण दिन है, तो यह एक ऐसा अवसर होता है कि व्यक्ति अपनी सीमितता को विसर्जित कर के, सृजन के उस असीम स्त्रोत का अनुभव करे, जो प्रत्येक मनुष्य में बीज रूप में उपस्थित है।

यहाँ पर आपको बेंगलुरु के कुछ प्रसिद्ध शिवालय या शिव मंदिरों के बारे में जानकारी दे रहे हैं और यदि आप महाशिवरात्रि का त्योहार शिवालय में मनाना चाह रहे हैं तो, इन स्थानों पर अवश्य जायें। यहाँ महाशिवरात्रि (Maha Shivaratri) के दौरान यहां काफी भीड़ भी रहती है।

शिवोहम शिव मंदिर

शिवोहम शिव मंदिर भारत में कर्नाटक राज्य के बंगलौर शहर के ओल्ड एयरपोर्ट रोड पर स्थित एक मंदिर है। इस मंदिर में शिव जी की 65 फीट (20 मीटर) की एक विशाल और सुंदर प्रतिमा है। इस मंदिर में भगवान शिव की ध्यान मुद्रा में प्रतिमा स्थित है। इस मंदिर में एक ही जगह पर 12 ज्योतिर्लिगों के दर्शन हो जाएंगे। इन 12 ज्योतिर्लिंग (सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमाशंकर, विश्वनाथ मंदिर, त्र्यंबकेश्वर, बैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वरम, घृष्णेश्वर) को मंदिर में एक कृत्रिम गुफा में बनाया गया है।

भगवान शिव का विशेष दिन माने जाने वाले प्रत्येक सोमवार को विशेष कार्यक्रम और गतिविधियां आयोजित की जाती हैं। इसे “सोमवार का त्योहार” के नाम से जाना जाता है। महाशिवरात्रि (Maha Shivaratri) समारोह में दिन और रात के उत्सव होते हैं तथा शिव अंताक्षरी और जागरण जैसे लाइव भजन और आध्यात्मिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। महाशिवरात्रि के दौरान लेजर-प्रोजेक्टेड लाइट एंड साउंड शो का आयोजन किया जाता है।

शिवोहम शिव मंदिर अपनी आय को ए.आई.आर. ह्यूमैनिटेरियन होम्स (A.i.R Humanitarian Homes) के साथ साझा करके बेघर लोगों की सहायता करता है यह बैंगलोर (Bangalore) में तीन स्थानों पर संचालित होता है और कुल मिलाकर लगभग 600 से अधिक निवासियों की सेवा करता है।

श्री प्रसन्न पार्वती समेथा श्री सोमेश्वर स्वामी मंदिर

महाशिवरात्रि (Maha Shivaratri) के दिन श्री प्रसन्न पार्वती समेथा श्री सोमेश्वर स्वामी मंदिर में जाना काफी शुभ माना जाता है, यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। श्री प्रसन्न पार्वती समेथा श्री सोमेश्वर स्वामी मंदिर बेंगलुरु के धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह शहर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है और चोल साम्राज्य काल से जुड़ा हुआ है। यह मंदिर 12वीं शताब्दी की शुरुआत (1247 ई.) का है। मंदिर के गर्भगृह में एक “स्वयंभू” शिव लिंगम (प्राकृतिक चट्टान संरचना द्वारा निर्मित शिव लिंगम) है।

यह मंदिर बेंगलुरु के मुरुगेशपाल्या क्षेत्र में स्थित है, जहाँ पर शहर के अन्य स्थानों से आसानी से पहुंच जाएं।

सोमेश्वर स्वामी मंदिर, हलासुरु

सोमेश्वर मंदिर भारत के कर्नाटक राज्य के बैंगलोर में हलासुरू (उल्सूर) में स्थित है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर चोल काल से,  शहर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। इन मंदिर में हिरिया केम्पे गौड़ा द्वितीय के शासन के तहत विजयनगर साम्राज्य काल के अंत में कुछ प्रमुख संशोधन और निर्माण कार्य भी किए गए थे।

मुख्य त्यौहार महाशिवरात्रि (Maha Shivaratri) , ब्रह्मोत्सवम और कार्तिक सोमवार हैं। अन्य त्यौहारों में अन्नाभिषेकम, शिव दीपम, आर्द्रा दर्शनम, संक्रांति, युगादि और नवरात्रि शामिल हैं। यहाँ हर सोमवार को अन्न प्रसादम प्रदान किया जाता है। मंदिर में वाहनों में नंदी, हाथी, चूहा, मोर, बकरी और सांप शामिल हैं, जबकि चांदी का रथ हाल ही में जोड़ा गया है । पीठासीन दिव्य युगल की मूर्तियाँ एक वाहन या रथ पर बैठी हैं जिन्हें मंदिर के चारों ओर जुलूस के रूप में लाया जाता है जबकि मंदिर का बैंड संगीत बजाता है।

सोमेश्वर स्वामी मंदिर का इतिहास

आधिकारिक मैसूर के गजट (1887) में मंदिर के अभिषेक के पीछे एक किंवदंती का वर्णन किया है। उसके अनुसार शिकार करते समय राजा केम्पे गौड़ा अपनी राजधानी यालहंका से बहुत दूर चले गए थे और थके होने के कारण वे एक पेड़ के नीचे आराम करने लगे और सो गए। इस बीच नींद में स्थानीय देवता सोमेश्वर (शिव) ने उन्हें सपने में दर्शन दिए और उन्हें जमीन में गड़े खजाने का उपयोग करके एक मंदिर बनाने का निर्देश दिया। और केम्पे गौड़ा को दैवीय आशीर्वाद प्रदान किया। उसके बाद राजा केम्पे गौड़ा को बताए स्थान पर खजाना मिला और उन्होंने कर्तव्यनिष्ठा से मंदिर का निर्माण भी पूरा किया।

किंवदंती के दूसरे संस्करण के अनुसार, येलहंका नाडा प्रभुओं के एक छोटे राजवंश के राजा जयप्पा गौड़ा (1420-1450 ई.) वर्तमान हलासुरु क्षेत्र के पास एक जंगल में शिकार कर रहे थे, जब उन्हें थकान महसूस हुई और वे एक पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे। एक सपने में, एक व्यक्ति उनके सामने आया और उन्हें बताया कि जिस स्थान पर वे सो रहे थे, उसके नीचे एक लिंग (भगवान शिव का सार्वभौमिक प्रतीक) दबा हुआ था। उन्हें इसे वापस लाने और एक मंदिर बनाने का निर्देश दिया गया। जयप्पा को खजाना मिला और उन्होंने शुरू में लकड़ी से मंदिर बनवाया।

एक अन्य विवरण के अनुसार मंदिर का निर्माण चोल राजवंश से हुआ था, जिसका जीर्णोद्धार बाद में येलहंका नाडा प्रभुओं द्वारा किया गया था। कामाक्षी मंदिर का निर्माण मैसूर महाराजाओं ने करवाया था। हालाँकि, उनसे भी पहले, आदि शंकराचार्य ने यहाँ एक श्री चक्र की स्थापना की थी। इस मंदिर की दीवारों में विजयनगर शैली की वास्तुकला की देखने को मिलेगी।

एक मान्यता है कि फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शिव ने वैराग्य त्यागकर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था और माता पार्वती से विवाह किया था. इसी वजह से हर साल महाशिवरात्रि (Maha Shivaratri) मनाई जाती है.

हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि मनाई जाती है। इसे मासिक शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। इस तरह से एक वर्ष में 12 मासिक शिवरात्रियां होती हैं। वहीं फाल्गुन माह में आने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि (Maha Shivaratri) कहा जाता है।

 

 

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