Mahakumbh 2025: महाकुंभ की उत्पत्ति, महत्व एवं पवित्र स्नान की तिथियां
India, Prayagraj Mahakumbh 2025: महाकुंभ मेला (Mahakumbh Mela ; Kumbh Mela) हिन्दू धर्म का सबसे विशाल धार्मिक आयोजन है, जिसमें देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं.
इस वर्ष 2025 में यह मेला प्रयागराज (Prayagraj) में आयोजित होने जा रहा है, और इसके लिए तैयारियों का कार्य तेजी से चल रहा है.
महाकुंभ मेला हर 12 वर्ष में एक बार यहाँ आयोजित होता है, और इस अवसर पर तीन पवित्र नदियों ( गंगा जी , यमुना जी और सरस्वती जी) के संगम के साथ भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और परंपरा का अद्वितीय मिलन देखने को मिलता है.
पौराणिक विश्वास और ज्योतिषियों के अनुसार कुम्भ का असाधारण महत्व बृहस्पति के कुम्भ राशि में प्रवेश तथा सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ जुड़ा है।
ग्रहों की स्थिति हरिद्वार से बहती गंगा के किनारे पर स्थित हर की पौड़ी स्थान पर गंगा जल को औषधिकृत करती है तथा उन दिनों यह अमृतमय हो जाती है।
यही कारण है कि अपनी अन्तरात्मा की शुद्धि हेतु पवित्र स्नान करने लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से अर्ध कुम्भ के काल में ग्रहों की स्थिति एकाग्रता तथा ध्यान साधना के लिए उत्कृष्ट होती है।
कुम्भ पर्व के आयोजन को लेकर कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं जिनमें से सर्वाधिक मान्य कथा देव-दानवों द्वारा समुद्र मन्थन से प्राप्त अमृत कुम्भ से अमृत बूँदें गिरने को लेकर है।
इस कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब इन्द्र और अन्य देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। तब सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हे सारा वृतान्त सुनाया। तब भगवान विष्णु ने उन्हे दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मन्थन करके अमृत निकालने की सलाह दी।
भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर सम्पूर्ण देवता दैत्यों के साथ सन्धि करके अमृत निकालने के यत्न में लग गए। अमृत कुम्भ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इन्द्रपुत्र जयन्त अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयन्त का पीछा किया और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयन्त को पकड़ा। तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा।
इस परस्पर मारकाट के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कलश से अमृत बूँदें गिरी थीं। उस समय चन्द्रमा ने घट से प्रस्रवण (dispersion from decline) होने से, सूर्य ने घट फूटने से, गुरु ने दैत्यों के अपहरण से एवं शनि ने देवेन्द्र के भय से घट की रक्षा की।
कलह शान्त करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर यथाधिकार सबको अमृत बाँटकर पिला दिया।
इस प्रकार देव-दानव युद्ध का अन्त किया गया।
अमृत प्राप्ति के लिए देव-दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरन्तर युद्ध हुआ था।
देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के तुल्य होते हैं। अतएव कुम्भ भी बारह होते हैं। उनमें से चार कुम्भ पृथ्वी पर होते हैं और शेष आठ कुम्भ देवलोक में होते हैं, जिन्हें देवगण ही प्राप्त कर सकते हैं, मनुष्यों की वहाँ पहुँच नहीं है।
जिस समय में चन्द्रादिकों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चन्द्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, उस समय कुम्भ का योग होता है अर्थात जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चन्द्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है, उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहाँ-जहाँ अमृत बूँद गिरी थी, वहाँ-वहाँ कुम्भ पर्व होता है।
महाकुंभ में विशेष दिन :
मकर संक्रान्ति
पौष पूर्णिमा
एकादशी
मौनी अमावस्या
वसन्त पंचमी
रथ सप्तमी
माघी पूर्णिमा
भीष्म एकादशी
महाशिवरात्रि
महाकुंभ मेला भारत में चार प्रमुख तीर्थ स्थलों पर आयोजित होता है:
- प्रयागराज में संगम तट पर
- हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर
- उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर
- नासिक में गोदावरी नदी के तट पर
क्या है महाकुंंभ की धार्मिक मान्यता ? (Religious significance of Maha Kumbh?)
‘कुम्भ’ का शाब्दिक अर्थ “घड़ा, सुराही, बर्तन” है। यह वैदिक ग्रन्थों में पाया जाता है। इसका अर्थ, अक्सर पानी के विषय में या पौराणिक कथाओं में अमरता (अमृत) के बारे में बताया जाता है। मेला शब्द का अर्थ है, किसी एक स्थान पर मिलना, एक साथ चलना, सभा में या फिर विशेष रूप से सामुदायिक उत्सव में उपस्थित होना। यह शब्द ऋग्वेद और अन्य प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों में भी पाया जाता है। इस प्रकार, कुम्भ मेले का अर्थ है “अमरत्व का मेला” (Attainment of Immortality) है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, महाकुंभ के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी जन्मों के पाप कर्म समाप्त हो जाते हैं और आत्मा को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति (Attainment of Immortality) मिलती है.
महाकुंभ 2025 कहां होगा ? (Where will Maha Kumbh 2025 be held ?)
2025 में महाकुंभ मेला प्रयागराज में आयोजित किया जाएगा. यह मेला हर 12 साल में एक बार होता है और इसे अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक आयोजन माना जाता है.
महाकुंभ कब होगा? (Maha Kumbha Date ?)
हिंदू पंचांग के अनुसार, महाकुंभ मेला पौष पूर्णिमा (पौष महीने की पूर्णिमा तिथि) से शुरू होगा और महाशिवरात्रि पर समाप्त होगा.
अंग्रेजी कैलंडर के अनुसार 2025 में यह मेला 13 जनवरी से 26 फरवरी तक चलेगा, जो कुल 45 दिनों का होगा.
महाकुंभ स्थल कैसे तय होते हैं ? (Who Maha Kumbh sites decided ?)
खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रान्ति के दिन प्रारम्भ होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में और वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रान्ति के होने वाले इस योग को “कुम्भ स्नान-योग” कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलकारी माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार इस दिन खुलते हैं और इस प्रकार इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। यहाँ स्नान करना साक्षात् स्वर्ग दर्शन माना जाता है। इसका हिन्दू धर्म मे बहुत अधिक महत्व है। महाकुंभ के आयोजन स्थल का निर्धारण आकाशीय ग्रहों की स्थिति के आधार पर किया जाता है, खासकर बृहस्पति और सूर्य के राशि के आधार पर. यह प्रत्येक महाकुंभ के स्थान को निर्धारित करता है.
- हरिद्वार: जब बृहस्पति कुंभ राशि (मकर) में और सूर्य मेष राशि में होते हैं.
- उज्जैन: जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं.
- नासिक: जब सूर्य और बृहस्पति दोनों सिंह राशि में होते हैं.
- प्रयागराज: जब बृहस्पति वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में होते हैं.
महाकुंभ 2025: शाही स्नान की तिथियां
- 13 जनवरी 2025 – पौष पूर्णिमा स्नान
- 14 जनवरी 2025 – मकर संक्रांति स्नान
- 29 जनवरी 2025 – मौनी अमावस्या स्नान
- 3 फरवरी 2025 – बसंत पंचमी स्नान
- 12 फरवरी 2025 – माघी पूर्णिमा स्नान
- 26 फरवरी 2025 – महाशिवरात्रि स्नान
यह महाकुंभ मेला न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और आस्था का भी एक बड़ा प्रतीक है, जो लाखों भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है.