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Monday, December 23, 2024

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Mystic Saint: Neeb Karori Baba अवतारी महात्मा और राम भक्त हनुमान जी का रूप

 

Mystic Saint: Neeb Karori Baba अवतारी महात्मा और राम भक्त हनुमान जी का रूप

Neeb Karori Baba: महाराज जी ने कभी कोई प्रवचन नहीं दिया, सबसे संक्षिप्त, सरल कहानियाँ ही उनकी शिक्षाएँ थीं। आम तौर पर, वे एक लकड़ी की बेंच पर बैठते या लेटे रहते थे, वह एक चारखानेदार कंबल लपेटे रहते थे, और भक्त उनके चारों ओर बैठेते थे।

महाराज जी, दूसरों की सेवा को भगवान के प्रति बिना शर्त भक्ति के उच्चतम रूप के रूप में प्रोत्साहित करते थे।

आडम्बर, कर्मकाण्ड समाज में व्याप्त कुरीतियों से हमेशा दूर रहने को कहते थे, उनका स्वयं का जीवन, एक आदर्श ‘संत का जीवन’ के सामान था.

लाखों वैभव-हीन से वैभव-वान तक भक्त होने के बावजूद भी हमेशा एक लकड़ी की तिपाई या खटिया पर बैठते थे और सामान्य गरम चोखानेदार कम्बल से शरीर को ढकते थे, परिवार, संपत्ति , धन इन सभी कलयुगी लालसाओं से दूर ही रहे.

सरल जीवन और काया के अंदर ब्रह्म-तेज लिए महाराज जी एक अवतारी पुरुष ही थे.

नीब करौरी बाबा, नीम करौली बाबा, महाराज जी, आध्यात्मिक गुरु, अवतारी महात्मा और राम भक्त हनुमान जी का रूप माने जाते है.

उन्हें भारत के बाहर विदेशों में भी खासकर अमरीकीयों में आध्यात्मिक गुरु के रूप में जाना जाता है, विषेशरूप से उन सभी लोगों ने 1960 और 1970 के दशक में भारत की यात्रा कर महाराज जी के दर्शन एवं सानिध्य प्राप्त किया और जीवन पर्यन्त महाराज जी के अनुयायी बने रहे तथा उनकी सरल शिक्षा और ज्ञान, को विश्व में कल्याण और आध्यात्मिक जीवन के लिए प्रचारित किया.

नीब करौरी बाबा के सबसे प्रसिद्ध अनुयायी, आध्यात्मिक शिक्षक राम दास और भगवान दास, संगीतकार कृष्ण दास और जय उत्तल थे।

नीब करौरी बाबा का मूल नाम लक्ष्मण नारायण शर्मा था उनका का जन्म 1900 के आसपास भारत के उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के अकबरपुर गाँव में एक धनी ब्राह्मण परिवार में हुआ था।बाल विवाह की कुरीतिओं के चलते , 11 वर्ष की आयु में माता-पिता द्वारा लक्ष्मण नारायण शर्मा का विवाह कर दिए जाने के बाद, वे एक घुमक्कड़ साधु बनने के लिए घर छोड़ कर चले गए।

लेकिन, कुछ समय पश्चात् पिता के विशेष अनुरोध और विधि के विधान की रचना के चलते , एक व्यवस्थित विवाहित जीवन जीने के लिए घर वापस लौट आए, और कुछ समय तक गृहस्थ रहकर सामाजिक जीवन व्यतीत किया.

लेकिन 1958 में, जन-कल्याण हेतु उन्होंने हमेशा के लिए ग्रहस्त जीवन छोड़ अपने आपको समाज और जन-मानस के लिए समर्पित कर दिया.

साधना और तपश्चर्या के प्रारंभिक समय में उन्हें बाबा लक्ष्मण दास (“लक्ष्मण दास”) के नाम से जाना जाता था.

नीम करौली बाबा के नाम-रूप में अवतरित या पहचान होने से पहले की एक सच्ची घटना उनके परम शिष्य श्री राम दास जी बताते हैं कि,

एक बार बाबा लक्ष्मण दास बिना टिकट के ट्रेन में चढ़ गए, और टीटीई द्वारा टिकट मांगने पर टिकिट प्रस्तुत न कर सके, परिणाम स्वरुप टीटीई ने उन्हें ट्रैन रुकने पर उतर जाने को कहा, और जैस ही ट्रैन एक स्थान पर किसी कारण बस रुकी, टीटीई ने उनको ट्रैन से उतार दिया और साथ ही भारतीय संत परंपरा के सम्बन्ध में कुछ अनर्गल शब्द भी कहे.

बाबा को रेलगाड़ी से जबरजस्ती उतारने के बाद, रेलगाड़ी के ड्राइवर ने जब आगे जाने के लिए ब्रेक हटाया तो पाया की रेलगाड़ी आगे नहीं बढ़ रही है, परेशान हो कर पुनः प्रयास किया, परन्तु गाड़ी आगे न बढ़ सकी, सभी ब्रेक और इंजन परीक्षण किया गया और सभी को दुरुस्त पाया।

अब सभी घोर निराशा में डूब गए क्योंकि कुछ भी असामान्य नहीं था, तभी कुछ यात्रियों को टीटीई के द्वारा साधु के साथ की गई आभद्रता का स्मरण हुआ और ड्राइवर को भी बताया, तब ड्राइवर ने टीटीई को आदेशित करते हुए, साधु से माफ़ी मांगने को कहा।

टीटीई द्वारा माफी मांगे जाने की बाद बाबा लक्ष्मण दास जी ने उनको माफ कर दिया और वचन लिया की रेलवे कंपनी इस स्थान पर एक स्टेशन बना कर गाड़ी रुकने का प्रबंध करेगी जिससे यहाँ की जनता के लिए आवागमन का साधन हो सके। क्योंकि उस समय ग्रामीणों को निकटतम स्टेशन तक पहुँचने के लिए कई मील पैदल चलना पड़ता था।

साथ ही भविष्य में, भारतीय संतों का आदर करने का भी वचन लिया, और बाबा लक्ष्मण दास मज़ाक करते हुए ट्रेन में चढ़ गए, “क्या, ट्रेन शुरू करना मेरा काम है?”

उनके चढ़ने के तुरंत बाद, ट्रेन चल पड़ी, लेकिन ट्रेन के ड्राइवर और अन्य टीटीई ने कहा की वह तब तक आगे नहीं बढ़ेंगे जब तक कि बाबा जी उन्हें आशीर्वाद न दे दें। बाबा ने अपना आशीर्वाद दिया और ट्रेन आगे बढ़ गई।

जिस स्थान पर रेल रुकी थी कालांतर में वहाँ पर रेलवे कंपनी ने रेल को रुकने के लिए एक स्टेशन का निर्माण करवाया और उस स्थान का नाम नीब करौरी रखा, और बाबा लक्ष्मण दास जी अब नीब करौरी बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो गये। और वहाँ के आस-पास के गांवों की जनता को आवागमन का साधन हो गया।

यह स्थान भारत के उत्तरप्रदेश राज्य के फर्रुखाबाद जिले के अंतर्गत आता है।

बाबा कुछ समय तक नीब करौरी गाँव में रहे और स्थानीय लोगों ने उनका नाम नीब करौरी बाबा रखा, बाद मे वह इसी नाम से प्रसिद्ध हो गये।

नीब करौरी बाबा, जीवन पर्यंत पूरे उत्तरी भारत में घूमते रहे। इस दौरान उन्हें कई नामों से जाना जाता था, जैसे, लक्ष्मण दास बाबा, हांडी वाला बाबा और तिकोनिया वाला बाबा इत्यादि।

गुजरात के मोरबी के ववानिया गाँव में जब उन्होंने तपस्या और साधना की, तो उन्हें तलैया बाबा के नाम से जाना जाता था।
वृंदावन में, स्थानीय निवासी उन्हें “चमत्कारी बाबा” के नाम से संबोधित करते थे।

अपने जीवनकाल उन्होंने कैंची (नैनीताल,उतराखंड) और वृंदावन (मथुरा, उत्तरप्रदेश) में दो मुख्य आश्रम का निर्माण करवाया, साथ ही नीब करौरी स्थान में तपस्या स्थल और मंदिर का रख-रखाव का कार्य भी करवाया।

समय के साथ-साथ, उनके नाम पर अनेक मंदिरों का निर्माण भी किया गया।

कैंची धाम आश्रम, जहां वे वह अपने जीवन के अंतिम दशक में रहे, 1964 में एक हनुमान मंदिर के साथ बनाया गया था। इसकी शुरुआत दो साल पहले दो स्थानीय साधुओं, प्रेमी बाबा और सोमबारी महाराज के यज्ञ करने के लिए एक मामूली मंच के निर्माण से हुई थी।

पिछले कुछ वर्षों में नैनीताल से 17 किमी दूर नैनीताल-अल्मोड़ा मार्ग पर स्थित यह मंदिर स्थानीय लोगों के साथ-साथ दुनिया भर के आध्यात्मिक साधकों और भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बन गया है।

हर साल 15 जून को मंदिर के उद्घाटन के उपलक्ष्य में कैंची धाम में भंडारा होता है जिसमें लाखों भक्त दर्शन लाभ उपरांत प्रसाद ग्रहण करते हैं।

जीवन पर्यंत महाराज जी भंडारा और प्रसाद वितरण के लिए उत्साहित रहते थे, उनका उदेश्य रहता था की कभी भी, कहीं भी कोई भूखा प्यास न रहे,

दर्शनार्थियों के लिए, या किसी अन्य आपदा ग्रसित के आगमन से पूर्व ही वह उनके लिए भोजन-प्रासाद बनवा लिया करते थे।

महाराज जी अपने भक्तों, और जो भी उनको पुकारता था उसकी मदद के लिए एक ही समय में कई स्थानों पर, कई रूपों में उपस्थित हो जाते थे।

कई बार भक्तों के घर बिना बताए पहुँच जाते थे, और आने-वाली विपदा के लिए सावधान कर, उसके निवारण का उपाय भी कर देते थे।

जितना उनके बारे में जानते है, जितना पता लगता है उतना ही उनके जीवन के प्रति सम्मान और जिज्ञासा बढ़ती जाती है।

आज भी महाराज जी, भक्तों और उनको मानने वालों को अप्रतियक्ष रूप से विपरीत परिस्थितियों में सहारा देते हैं और उनकी व्यधि बाधायों से रक्षा करते हैं।

नीम करौली बाबा का देहवसान 11 सितंबर, 1973 दिन के समय लगभग 1:15 बजे, वृंदावन के एक अस्पताल में हुआ।

वह आगरा से नैनीताल के पास कैंची (कैंची-धाम), रात की ट्रेन से लौट रहे थे, जहां उन्होंने सीने में दर्द महसूस होने के कारण हृदय रोग विशेषज्ञ से मुलाकात की थी। वह और उनके यात्रा साथी मथुरा रेलवे स्टेशन पर उतरे थे, जहां उन्हें अस्वस्थता महसूस होने लगी, तब उन्होंने श्री वृंदावन धाम ले चलने का अनुरोध किया।

डॉक्टर उन्हें अस्पताल के आपातकालीन कक्ष में ले गए। डॉक्टर ने उन्हें इंजेक्शन दिए और उनके चेहरे पर ऑक्सीजन मास्क लगाया।

अस्पताल के डॉक्टर ने कहा कि वह मधुमेह के कारण अचेत हैं। और उनकी नब्ज ठीक है।

लेकिन, कुछ पल पश्चात महाराज जी उठे, और चेहरे से ऑक्सीजन मास्क और हाथ से रक्तचाप मापने वाला बैंड हटा दिया, फिर कई बार दोहराया, “जय जगदीश हरे” (“ब्रह्मांड के भगवान की जय हो”),

लेकिन हर बार कम स्वर में। धीरे धीरे उनका चेहरा शांत होता गया और अवतारी महात्मन के शरीर से आत्मा प्रस्थान कर गई।

महाराज जी की समाधि वृंदावन आश्रम के परिसर में बनाई गई है, जहाँ उनकी कुछ निजी वस्तुएँ भी रखी हैं।

नीम करौली बाबा भक्ति योग के आजीवन सिद्ध थे, और दूसरों की सेवा को भगवान के प्रति बिना शर्त भक्ति के उच्चतम रूप के रूप में प्रोत्साहित करते थे।

राम दास द्वारा संकलित पुस्तक ‘मिरेकल ऑफ़ लव’ (Miracle of Love) में, अंजनी नामक एक भक्त ने निम्नलिखित विवरण साझा किया: उनकी कोई जीवनी नहीं हो सकती। तथ्य कम हैं, कहानियाँ बहुत हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें भारत के कई हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता था, जो वर्षों से दिखाई देते और गायब होते रहे। हाल के वर्षों में उनके गैर-भारतीय भक्त उन्हें नीम करौली बाबा के नाम से जानते थे, लेकिन ज़्यादातर “महाराजजी” के नाम से। जैसा कि उन्होंने कहा, वे “कोई नहीं” हैं।

महाराज जी ने कभी कोई प्रवचन नहीं दिया, सबसे संक्षिप्त, सरल कहानियाँ ही उनकी शिक्षाएँ थीं। आम तौर पर, वे एक लकड़ी की बेंच पर बैठते या लेटे रहते थे, वह एक चारखानेदार कंबल लपेटे रहते थे, और भक्त उनके चारों ओर बैठेते थे।

आगंतुक आते-जाते रहते थे, उन्हें भोजन-प्रसाद दिया जाता था, कुछ शब्द बोल देते थे, सिर हिला कर अपनी सहमति देते, कभी सिर या पीठ पर थपकी भी दे देते थे संध्या से पहले भक्तों को आश्रम से विदा लेने को कहते थे, आश्रम में गपशप और हंसी-मजाक भी होता था, क्योंकि उन्हें मज़ाक करना पसंद था।

लेकिन कभी-कभी बैठे-बैठे शांत हो जाते, प्रतीत होता की परोक्ष रूप में किसी अन्य स्थान की यात्रा पर चले गए हों.

आश्रम के आदेश आम तौर पर पूरे परिसर में तीखी आत्मीय पुकार के साथ दिए जाते थे।

कभी-कभी वे मौन में बैठते थे, एक दूसरी दुनिया में लीन, जिसका हम अनुसरण नहीं कर सकते थे, लेकिन आनंद और शांति हम पर बरसती थी। वह कौन थे, यह उनके अनुभव से अधिक कुछ नहीं था, उनकी उपस्थिति का अमृत, उनकी अनुपस्थिति की समग्रता, जो अब हमें उनके प्लेड (चोखानेदार) कंबल की तरह ढँक रही हैं।

महाराज जी कहा करते थे कि आसक्ति और अहंकार ईश्वर की प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधाएँ हैं तथा “जब तक भौतिक शरीर में आसक्ति और अहंकार है, तब तक एक विद्वान और मूर्ख एक जैसे हैं।”

वे लोगों को हर चीज़ से ऊपर ईश्वर की इच्छा के आगे समर्पण करने की सलाह देते थे, ताकि वे ईश्वर में प्रेम और विश्वास विकसित कर सकें और इस तरह जीवन में अनावश्यक चिंताओं से मुक्त हो सकें।

नीम करौली बाबा के आश्रम कैंची, भूमिधार, काकरीघाट, कुमाऊं पहाड़ियों में हनुमानगढ़ी और वृंदावन, ऋषिकेश, लखनऊ, शिमला, फर्रुखाबाद में खिमसेपुर के पास नीम करौली गाँव और भारत में दिल्ली में हैं।

विदेशी भक्तों द्वारा बनाएं, उनके आश्रम ताओस-न्यू मैक्सिको, और संयुक्त राज्य अमेरिका में भी स्थित है।

एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स अपने मित्र डैन कॉटके के साथ हिंदू धर्म और भारतीय आध्यात्मिकता का अध्ययन करने के लिए अप्रैल 1974 में भारत आए और उन्होंने नीम करौली बाबा से मिलने की भी योजना बनाई, लेकिन वहां पहुंचने पर पता चला कि बाबा जी का देहवसान पिछले सितंबर में हो चुका है।

हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट्स भी नीम करौली बाबा से प्रभावित थीं। महाराज जी की एक शांत और उनके मुखमंडल पर उपस्थित तेज वाली उनकी एक तस्वीर ने रॉबर्ट्स को हिंदू धर्म की ओर आकर्षित किया।

जॉब्स से प्रभावित होकर मार्क जुकरबर्ग ने भी कैंचीधाम में नीम करौली बाबा जी के आश्रम का दौरा किया था।

लैरी ब्रिलियंट गूगल के लैरी पेज और ईबे के सह-संस्थापक जेफरी स्कोल को आश्रम की तीर्थयात्रा पर ले गए।

संयुक्त राज्य अमेरिका लौटने के बाद राम दास और लैरी ब्रिलियंट ने बर्कले, कैलिफोर्निया में स्थित एक अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन सेवा फाउंडेशन की स्थापना की (‘Seva Foundation’, an international healthcare organization based in Berkeley, California)।

2000 के दशक के अंत में एक और फाउंडेशन विकसित हुआ, ‘लव सर्व रिमेम्बर फाउंडेशन’ (‘Love Serve Remember Foundation’), जिसका उद्देश्य नीम करौली बाबा की शिक्षाओं को संरक्षित करना और विश्व कल्याण के लिए प्रचारित करना.

2021 की डॉक्यूमेंट्री विंडफॉल ऑफ ग्रेस (Documentary- Windfall of Grace) सरल, देहाती भारतीय भक्तों की कहानियों के साथ-साथ प्रसिद्ध अमेरिकी भक्तों की कहानियों का एक आकर्षक मिश्रण प्रस्तुत करती है।

ये अभिव्यक्तियाँ न केवल विरोधाभासों को सामने लाने का प्रयास करती हैं, बल्कि नीम करौली बाबा के प्रति उनके अत्यधिक प्रेम और समर्पण के माध्यम से दोनों के बीच समानताएँ भी सामने लाती हैं। तथा बाबा के सनिध्य ने उनके जीवन के उद्देश्य के साथ-साथ उनके आध्यात्मिक पथ और अभ्यास में नाटकीय बदलाव भी लाए।

 

अस्वीकरण: महाराज जी के सम्बन्ध में यह संकलन विभिन्न पुस्तकों और मीडिया में उनके भक्तों द्वारा लिखे गए विचार है. संकलित लेख में किसी विचार से सहमति या असहमति हो सकती है लेकिन उसके लिए मॉन्कटॉमेस की जिम्मेदारी नहीं है.

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