पंचतंत्र की कहानी (Panchtantra Story): चतुर चूहा
एक चूहा था। वह रास्ते पर जा रहा था।
उसे कपड़े का एक टुकड़ा मिला। वह उसे लेकर आगे बढ़ा । उसने एक दरजी की दुकान देखी । दरजी के पास जाकर उसने कहा
चूहा : दरजी रे दरजी ! इस कपड़े की टोपी सी दे ।
दरजी : यह कौन बोल रहा है ?
चूहा : मैं चूहा;, चूहा बोल रहा हूँ । इसकी एक टोपी सी दे चल…..
दरजी : चल… रास्ता नाप। वरना कैची उठा कर मारूंगा ।
चूहा: अरे ! तू मुझे डरा रहा है।
कचहरी में जाऊँगा, सिपाही को बुलाऊँगा, तुझे खूब पिटवाऊँगा और तमाशा देखूँगा ।
यह सुन दरजी डर गया। उसने झटपट टोपी सी दी ।
टोपी पहनकर चूहा आगे बढ़ा। रास्ते में कशीदाकार की दुकान देखी। चूहे को टोपी पर कशीदा कढ़ाने की इच्छा हुई ।।
चूहा : भाई ! मेरी टोपी पर थोड़ा कशीदा काढ़ दे। कशीदाकार ने चूहे की ओर देखा । फिर उसे धमकाया और कहा ‘चल… चल… यहाँ किसे फुरसत है !”
चूहा : अच्छा, तो तू भी मुझे भगा रहा है, लेकिन सुन,
कचहरी में जाऊँगा, सिपाही को बुलाऊँगा, तुझे खूब पिटवाऊँगा और तमाशा देखूंगा।
यह सुन कशीदाकार घबराया। उसने चूहे को कचहरी में जाने से रोका। उससे टोपी लेकर उस पर अच्छा कशीदा काढ़ दिया। चूहा तो खुश हो गया ।
इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि, जीवन में किसी को भी छोटा नहीं समझना चाहिए।
About Panchtantra
Author of Panchtantra: संस्कृत विद्वान आचार्य विष्णु शर्मा
पंचतंत्र एक नीति, कथा और कहानियों का संग्रह है जिसके रचयिता मशहूर भारतीय विद्वान श्री आचार्य विष्णु शर्मा है।
पंचतंत्र की कहानियों में बच्चों के साथ-साथ बड़े भी बहुत रुचि रखते हैं।
पंचतंत्र की कहानी में हमेशा कोई ना कोई शिक्षा या मूल जरूर छिपा होता है, जो हमें सीख देती है।
संस्कृत के महान विद्वान लेखक आचार्य श्री विष्णु शर्मा पंचतंत्र संस्कृत में लिखित नीति पुस्तक के लेखक माने जाते हैं।
जब यह ग्रंथ बनकर तैयार हुआ तब विष्णु शर्मा की उम्र लगभग 40 वर्ष की थी, और उनका कालखंड लगभग चौथी-छठी शताब्दी ई.पू. का माना जाता है.
विष्णु शर्मा भारत के महिलारोप्य नामक नगर में रहते थे, जिसका भारत के वर्तमान मानचित्र पर स्थान अज्ञात है।
आचार्य विष्णु शर्मा जिस राज्य में रहते थे, उस राज्य के राजा के 3 मूर्ख पुत्र थे जिनकी शिक्षा की जिम्मेदारी विष्णु शर्मा को दी गई थी. लेकिन, आचार्य विष्णु शर्मा जानते थे कि यह इतने मूर्ख हैं कि इनको शास्त्र या पुराने तरीकों से शिक्षित नहीं किया जा सकता है.
तब उन्होंने नय तरीके से जंतु कथाओं के द्वारा पढ़ाने का निश्चय किया और पंचतंत्र को पांच समूह लगभग चौथी-छठी शताब्दी ई.पू में लिखा था
पंचतंत्र को पांच भागों में बांटा गया हैं।
1. मित्रभेद (मित्रों में मनमुटाव)
2. मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति (मित्र प्राप्ति या उसके लाभ)
3. संधि-विग्रह/काकोलूकियम (कौवे या उल्लुओं की कथा)
4. लब्ध प्रणाश (मृत्यु या विनाश के आने पर; यदि जान पर आ बने तो क्या?)
5. अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें; हड़बड़ी में क़दम न उठाएं)