Syria: चंद दिनों में 24 साल के असद शासन का अंत कैसे हुआ ?
सीरिया में इतनी तेज़ी से हालात बदलने का अंदेशा नहीं था कि, महज चंद ही दिनों में ताक़तवर दिखने वाले राष्ट्रपति बशर अल-असद कुर्सी छोड़कर मॉस्को चले जायेंगे।
अभी हफ़्ता भर पहले ही बशर अल-असद ने ‘आतंकवादियों को कुचलने’ की क़सम खाई थी. लेकिन जिस गति से ज़मीनी हालात बदले, उससे दुनिया भर में अरब जगत के जानकार लोग आश्चर्यचकित हैं और इस सारे घटनाक्रम ने कई सवाल भी दुनिया के सामने खड़े किए हैं जैसे कई कि, विद्रोही लड़ाकों की इस हैरान कर देने वाली गति को सीरिया की सेना क्यों नहीं रोक पाई.
वर्ष 2024 के 145 देशों के ग्लोबल फ़ायर पॉवर इंडेक्स के अनुसार, सैन्य ताकत के मामले में सीरिया अरब जगत में छठे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साठवें स्थान पर है.
इस रैंकिंग में सैनिकों की संख्या, सैन्य उपकरण, मानव संसाधन और रसद वगैरह को ध्यान में रखा जाता है.
अभी कुछ ही दिन पहले देश के उत्तर में स्थित शहर इदलिब में मौजूद हथियारबंद विपक्षी गुट हयात तहरीर अल-शाम के नेतृत्व में सरकार के ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू हुई थी और एक के एक बाद, इस गुट ने कई बड़े शहरों को अपने कब्ज़े में ले लिया था.
सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि विद्रोही लड़ाकों की इस हैरान कर देने वाली गति को सीरिया की सेना क्यों नहीं रोक पाई. सेना एक के बाद एक कई शहरों से पीछे क्यों हटती रही? इसके पीछे क्या वजहें हो सकती हैं?
सीरियाई सेना को अर्धसैनिक बलों और सिविल मिलिशिया का पूरा समर्थन था. ये फौज सोवियत संघ के ज़माने के उपकरणों और रूस जैसे सहयोगियों से मिले सैन्य साज़ो-सामान पर निर्भर थी.
ग्लोबल फ़ायर पॉवर के अनुसार, सीरिया की सेना के पास 1,500 से अधिक टैंक और 3,000 बख्तरबंद वाहन हैं. सेना के पास तोपखाना और मिसाइल सिस्टम तक भी हैं.
सीरियाई सेना के पास हवाई युद्ध के लिए भी हथियार हैं. इसके पास लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर और प्रशिक्षण विमान हैं. इसके अलावा सेना के पास एक मामूली नौसैनिक बेड़ा भी है.
सीरिया की नेवी और एयर फ़ोर्स के पास लताकिया (Latakia) और टार्टस ( Tartus ) जैसे कई महत्वपूर्ण हवाई अड्डे और बंदरगाहें भी हैं.
आंकड़ों के हिसाब से तो सीरियाई सेना की स्थिति अच्छी लग सकती है, लेकिन ऐसे कई कारण हैं जिससे यह कमज़ोर साबित हुई है.
सीरियाई गृह युद्ध के शुरुआती दिनों की तुलना में इस सेना ने अपने हज़ारों सैनिकों को खोया है. जब युद्ध की शुरुआत से अब तक आधे से अधिक सैनिक मौत के मुँह में जा चुके हैं । छिड़ी थी तब सीरिया की सेना में तीन लाख के करीब सैनिक थे. अब ये संख्या आधी ही बची थी.
आंकड़ों के अनुसार सीरिया की सेना में तीन लाख के करीब सैनिक थे. लेकिन अब ये संख्या आधी ही बची थी और सैनिकों की संख्या में गिरावट के मुख्य रूप से दो कारण थे, पहला युद्ध में मौत और दूसरा, बड़ी संख्या में सैनिकों का लड़ाई छोड़कर विद्रोहियों से हाथ मिलाना.
साथ ही सीरिया की एयर फ़ोर्स को भी विद्रोहियों और अमेरिका के हवाई हमलों का सामना करना पड़ा जिससे वो बेहद कमज़ोर हो गई थी.
जब दो दिसम्बर को सीरिया के उत्तरी शहर अलेप्पो में विद्रोहियों ने धावा बोला तो नैराब एयरपोर्ट पर लड़ाकू विमानों को सैनिक छोड़कर जा चुके थे.
सीरिया के पास तेल और गैस के महत्वपूर्ण भंडार हैं लेकिन युद्ध के कारण उन भंडारों का दोहन करने की उसकी क्षमता में काफी गिरावट आई है और अमेरिका के प्रतिबंधों के कारण सीरिया में असद सरकार के नियंत्रण वाले क्षेत्रों की आर्थिक स्थिति बहुत ही कमजोर हो गई
सीज़र एक्ट देश के जो हिस्से पूरी तरह से असद सरकार के नियंत्रण थे वहां कि आर्थिक स्थिति में और गिरावट देखी गई. इसकी वजह थी अमेरिका का सीज़र एक्ट.
दिसंबर 2019 में लागू किए गए अमेरिका सीज़र एक्ट के तहत किसी भी सरकारी निकाय या सीरियाई सरकार के साथ काम करने वाले व्यक्तियों पर अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे.
सीरियाई सरकारी समाचार एजेंसी के अनुसार, अल-असद ने कुछ दिन पहले ही सैनिकों के वेतन में 50 प्रतिशत की वृद्धि करने का एलान किया था.
इसका उद्देश्य स्पष्ट रूप से विद्रोही ताकतों के बढ़ते क़दमों के बीच सैनिकों का मनोबल बढ़ाना था, लेकिन शायद यह क़दम बहुत देर से उठाया गया था।
जब विद्रोही लड़ाके अलेप्पो से दमिश्क तक तेजी से आगे बढ़ते रहे तब, सीरियाई सैनिक हमा और होम्स से गुजरते हुए सड़कों पर अपने सैन्य उपकरण और हथियार तक छोड़ते जा रहे थे और दमिश्क शहर में तो कुछ सैनिकों ने अपनी सैन्य वर्दी उतारकर सिविल ड्रेस पहन ली है.
सेना का मनोबल ईरान, हिज़्बुल्लाह और रूस से प्रत्यक्ष सैन्य सहायता के कम होने से भी गिरा. ये तीनों पक्ष पहले की तुलना में अब पर्याप्त रूप से हस्तक्षेप करने में सक्षम नहीं हैं. अपने सहयोगियों की ओर से बिना किसी तत्काल मदद के वादे से सेना के लड़ने की इच्छा ख़त्म हो गई थी क्योंकि सीरिया की सेना का संचालन विदेशी मदद पर निर्भर था.
कई रेपोर्ट्स के मुताबिक, सेना के प्रशिक्षण का स्तर भी काफ़ी ख़राब हो गया था, साथ ही उनके अधिकारियों का नेतृत्व प्रदर्शन भी गिर गया था. जब सेना की यूनिट्स का सामना हयात तहरीर अल-शाम के लड़ाकों से हुआ तो कई अधिकारी अपने सैनिकों समेत पीछे हट गए या भाग गए.
अतीत में ईरान मैदानी समर्थन देने के लिए हिज़्बुल्लाह पर बहुत अधिक निर्भर था, लेकिन लेबनान में हिज़्बुल्लाह को हुए नुकसान के बाद, वो ऐसा करने में समर्थ नहीं था.
सीरिया को सलाह मशविरा देने आने वाले ईरानी अधिकारियों की भी लगातार कमी हो रही थी. पिछले दशक के दौरान सीरिया पर इसरायली हमलों की वजह से ईरान ज़मीन या हवाई मार्ग से तत्काल बड़ी सेना भेजने में सक्षम नहीं बचा था.
इसके अलावा इराक़ी सरकार और ईरान समर्थित लड़ाकों ने लगभग एक ही वक्त पर असद का सहयोग बंद कर दिया. ईरान को शायद ये अहसास हो गया था कि असद को सत्ता में बनाए रखना असंभव हो गया है.
एक सच ये भी है कि फरवरी 2022 की शुरुआत में ही यूक्रेन युद्ध की ज़रूरतों के कारण रूस ने लताकिया स्थित अपने बेस से बड़ी संख्या में अपने विमान और सेना को वापस बुला लिया था.
कई जानकार इस बात से सहमत हैं कि ईरान, हिज़्बुल्लाह और रूस ने सैन्य समर्थन बंद कर दिया था. और यही उन बुनियादी कारणों में से एक था जिसके कारण एक के बाद एक सीरियाई शहर विद्रोहियों के कब्ज़े में जाते गए.
सीरियाई सेना ने इस बार असद की सरकार को बचाने के लिए लड़ाई ही नहीं की, इसके विपरीत सेना ने लड़ाई से हटने और हथियार पीछे छोड़ने का फैसला किया. इससे यह भी पता चलता है कि 2015 के बाद असद के लिए रूस और हिज़्बुल्लाह के ज़रिए ईरानी समर्थन कितना अहम था.
कई पर्यवेक्षकों ने ये भी बताया कि सशस्त्र विद्रोही गुटों ने ख़ुद को एकजुट किया और एक कमांड रूम बनाया. अपने ताज़ा अभियान के लिए उन्होंने तैयारी की. वो सीरियाई सेना की तुलना में अपनी स्थिति को मजबूत करने में सफल रहे.
इसके अलावा विपक्षी नेताओं की तरफ़ कुछ अहम बयान भी सामने आए. उन्होंने सीरियाई नागरिकों को भरोसा दिलाया कि विपक्ष सभी संप्रदायों का सम्मान करेगा. विशेषज्ञों की राय में ऐसे बयानों ने विपक्षी गुटों के मिशन को आसान बनाया. और इस तरह ये सारा घटनाक्रम 1979 में ईरान के शाह के शासन के पतन जैसा लग रहा था।
सीरियाई विपक्ष, इसके इस्लामवादी और राष्ट्रवादी दोनों पक्ष, दो सप्ताह से भी कम समय में सीरियाई शासन को नष्ट करने में सफल हुए हैं.