दुनिया में काम के घंटों (Working Hours) को लेकर चर्चाएँ तेजी से चाल रही हैं। लेकिन क्या ज्यादा काम करने से देश की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ेगी, या फिर ऐसा करना भविष्य में मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होगा?।
भारत में कुछ दिनों पहले इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायणमूर्ति ने सप्ताह में 70 घंटे काम (Working Hours) करने का सुझाव दिया था, जबकि एलएंडटी के सीईओ एस.एन. सुब्रह्मण्यम ने इसे 90 घंटे तक (Working Hours) बढ़ाने और रविवार को भी काम करने की बात कही थी.
यदि लएंडटी के सीईओ एस.एन. सुब्रह्मण्यम के सुझाव की बात करें तो उसका विवरण शायद इस तरह होगा और शायद इसका आँकलन उन्होंने खुद भी नहीं किया होगा
एक सप्ताह (6 दिन)
कुल घंटे: 6 x 24 = 144 घंटे
कार्य का कुल समय (Working Hours) : 15 x 6 = 90 घंटे
ऑफिस ट्रैवल का कुल समय: 3 x 6 = 18 घंटे
खाने का (3 टाइम प्रति दिन ) कुल समय: (20Min x 3 ) x 6 = 6 घंटे
सोने का कुल समय: 8 x 6 = 48 घंटे
अन्य कार्य का कुल समय: 2 x 6 = 12 घंटे
कुल समय: 144 घंटे उसमें से किसी भी सामान्य भारतीय को (बिना परिवार के और हॉस्टल में रहने वाले को) काम के आलवा कम से कम 80 से 84 घंटे चाहिए , ऑफिस ट्रैवल करने का औसतन समय 3 से 5 घंटे प्रतिदिन होता है। इसके आलवा सोने और खाने का समय मिल दिया जी तो इसके पास मात्र 60 घंटे काम से लिए (Working Hours) 6 दिन में बचते हैं।
कई बार बहुत ऊंची पोस्ट पर बैठने वाले, उनको मिल रही सुविधाओं और उनकी पारिवारिक जिंदगी के अनुसार सभी की जिंदगी के लिए सोचते हैं और इस तरह के असंवेदनशील और मूर्खतापूर्ण बयानबाजी करते हैं। और इसी तरह सुब्रह्मण्यम के सुझाव पर भारत के युवाओं ने खूब प्रतिक्रियाएं दी थी।
दुनिया जब 40 या 70 घंटे के कामकाजी (Working Hours) सप्ताह पर बहस कर रही थी, तभी एलन मस्क ने इससे भी आगे बढ़ कर दावा किया कि अमेरिकी सरकारी विभाग डीओजीई के कर्मचारी हर सप्ताह 120 घंटे (Working Hours) तक काम करते है। इंसान के लिए इतने घंटे काम करना कितना सही है? या एलन मस्क का बयान कितना सत्य है यह एक विचारणीय प्रश्न है।
कितने घंटे काम विकास के लिए जरूरी?
ज्यादा काम से जुड़े बयानों को सुनकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं कि क्या सच में ज्यादा काम करने से ही देश का विकास हो सकता है?, क्या केवल ज्यादा काम करने वाली अर्थव्यवस्थाएं ही सफल है?
आवर वर्ल्ड इन डाटा ने 1850 से लेकर 2017 तक का विवरण दिया कि दुनिया में किस देश में औसतन कितने घंटे (Working Hours) काम किया जाता है. भारतीय कर्मचारी औसतन प्रति सप्ताह 42 घंटे (यदि सप्ताह में 6 दिन कार्य करें) आर्थिक गतिविधियों (Working Hours) में बिताते है.
अगर विभिन्न देशो से तुलना करे तो भारतीय लोगों के काम के घंटे वियतनाम, चीन, मलेशिया और फिलीपींस जैसे तेजी से विकसित हो रहे दूसरे देशों के समान है. वहीं, अधिकांश विकसित ओईसीडी (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन) देशों में कार्य घंटे काफी कम हैं. इन देशों में औसतन प्रति सप्ताह केवल 33 घंटे काम (Working Hours) किया जाता है.
करोशी और ग्वारोसा से बचना
हालांकि यह हमेशा से ऐसा नहीं था. 1850 में काम करने के घंटे औसत 60 से 70 घंटे (Working Hours) प्रति हफ्ता हुआ करते थे. हालांकि काम को लेकर लगातार दबाव से बचने के लिए और वर्क लाइफ बैलेंस बनाये रखने के लिए कई तरह के कदम उठाये गए थे. इनमें काम करने के घंटे और दिन कम करना भी शामिल था.
दक्षिण कोरिया और जापान अपने कड़े और लंबे काम करने के घंटों के लिए जाने जाते है. इन समाजों में अत्यधिक काम करने से मृत्यु तक हो जाना कभी आम बात हुआ करती थी.
जापान में ज्यादा काम से मरने वालो के लिए एक खास शब्द है – “करोशी” (過労死), जिसका मतलब है अत्यधिक काम के कारण मौत. कोरिया भी इससे अलग नहीं है, वहां इसके लिए “ग्वारोसा” (과로사) शब्द का प्रयोग किया जाता है.
19वीं शताब्दी में कोरिया उन देशों में शामिल था, जहां सबसे अधिक काम के घंटे हुआ करते थे. हालांकि हिंदी भाषा में इसके लिए कोई शब्द नहीं है लेकिन काम के दबाव के कारण मौत की खबरें भारत में भी सामने आई है.
काम या मानसिक स्वास्थ्य?
ऊपर से यह काफी आसान नजर आ सकता है कि सिर्फ कुछ घंटे ज्यादा काम (Working Hours) किया जाए. इसकी मदद से देश के आर्थिक विकास में सहयोग किया जाए और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे निकला जा सके। हालांकि यह इतना भी आसान नहीं है.
भारत के एक आर्थिक सर्वेक्षण 2024-2025 में यह उजागर किया गया कि लंबे समय तक डेस्क पर बैठकर काम करना मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है. जो लोग रोजाना 12 या उससे अधिक घंटे (Working Hours) डेस्क पर बिताते है, वे मानसिक तनाव या परेशानियों का सामना करते है.
डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के किए एक अध्ययन का हवाला देते हुए सर्वेक्षण में कहा गया कि दुनियाभर में हर साल लगभग 12 अरब कार्य दिवस डिप्रेशन और चिंता के कारण नष्ट हो जाते हैं, जिससे लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान होता है. इस सर्वेक्षण में बताया गया है कि अगर भारत की आर्थिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करना है, तो जीवनशैली से जुड़े फैसलों पर ध्यान देना जरूरी है क्योंकि खराब वर्क कल्चर और लंबे समय तक डेस्क पर काम करना कामकाजी लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है, जिससे आर्थिक विकास की रफ्तार धीमी हो सकती है.
भारत एक पारिवारिक संबंधों और सुखद जीवन शैली वाला देश हैं जहाँ वर्क लीफ बैलन्स होना या करना, बहुत महत्वपूर्ण है। भारत की जीवन शैली में सुब्रह्मण्यम जैसे लोगों के ‘करोशी’ और ‘ग्वारोसा’ को प्रेरित करने वाली सोच और ज्यादा काम के घंटे (Working Hours) को प्रोत्साहित करने की कोई जगह नहीं है।